Dementia: बच्चों में भी होती है भूलने की बीमारी, नई रिसर्च खोल सकती है इलाज के रास्ते
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Dementia: बच्चों में भी होती है भूलने की बीमारी, नई रिसर्च खोल सकती है इलाज के रास्ते

बचपन का डिमेंशिया 100 से ज्यादा दुर्लभ जेनेटिक डिसऑर्डर में से किसी एक के कारण होता है. हालांकि इसके कारण बुढ़ापे में होने वाले डिमेंशिया से अलग होते हैं, लेकिन बीमारी का धीरे-धीरे बढ़ना दोनों में एक समान है.

Dementia: बच्चों में भी होती है भूलने की बीमारी, नई रिसर्च खोल सकती है इलाज के रास्ते

बचपन और डिमेंशिया ये दो ऐसे शब्द हैं जिन्हें हम साथ में इस्तेमाल करना नहीं चाहते. लेकिन दुर्भाग्य से, ऑस्ट्रेलिया में लगभग 1400  बच्चे और युवा इस समय ऐसी बचपन की डिमेंशिया नामक बीमारी से जूझ रहे हैं, जिसका अभी तक कोई इलाज नहीं खोजा गया है.

आमतौर पर, बचपन का डिमेंशिया 100 से ज्यादा दुर्लभ जेनेटिक डिसऑर्डर में से किसी एक के कारण होता है. हालांकि इसके कारण बुढ़ापे में होने वाले डिमेंशिया से भिन्न होते हैं, लेकिन बीमारी का धीरे-धीरे बढ़ना दोनों में एक समान है. बचपन के डिमेंशिया से ग्रस्त बच्चे अपने दसवें जन्मदिन तक नहीं पहुंच पाते हैं और ज्यादातर 18 साल की उम्र से पहले ही मृत्यु हो जाती है. फिर भी, अधिकतर लोग इस भयावह स्थिति के बारे में जागरूकता नहीं है और महत्वपूर्ण बात यह है कि शोध का ध्यान भी नहीं दिया गया है, जिससे इलाज और उपचार खोजने में मदद मिल सके.

बचपन में डिमेंशिया का कारण
बचपन के डिमेंशिया के अधिकांश प्रकार हमारे डीएनए में म्यूटेशन (या गलतियों) के कारण होते हैं. ये गलतियां कई तरह के दुर्लभ जेनेटिक्स डिसऑर्डर को जन्म देती हैं, जो बदले में बचपन के डिमेंशिया का कारण बनती हैं. बचपन के डिमेंशिया विकारों में से दो-तिहाई 'जन्मजात मेटाबॉलिक दोष' के कारण होते हैं. इसका मतलब है कि शरीर में कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, फैटी एसिड और प्रोटीन के टूटने में शामिल मेटाबॉलिक पथ फेल हो जाते हैं. नतीजतन, न्यूरल पथ काम नहीं कर पाते हैं, न्यूरॉन्स (तंत्रिका कोशिकाएं जो शरीर में संदेश भेजती हैं) मर जाती हैं और प्रोग्रेसिव कॉग्निटिव में गिरावट होती है.

बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
ज्यादातर बच्चे शुरू में प्रभावित नहीं दिखाई देते. लेकिन सामान्य विकास के एक दौर के बाद, बचपन के डिमेंशिया से ग्रस्त बच्चे बात करने, चलने, सीखने, याद रखने और तर्क करने जैसे पहले सीखे गए सभी स्किन और क्षमताओं को धीरे-धीरे खो देते हैं. बचपन का डिमेंशिया व्यवहार में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन लाता है, जैसे कि आक्रामकता और अति सक्रियता. गंभीर नींद की समस्या आम है और आंखें व काम भी प्रभावित हो सकते हैं. कई बच्चों को दौरे पड़ते हैं. लक्षण शुरू होने की उम्र अलग-अलग हो सकती है, यह आंशिक रूप से डिमेंशिया पैदा करने वाले विशेष जेनेटिक डिसऑर्डर पर निर्भर करता है, लेकिन औसतन यह लगभग दो साल का होता है. ये लक्षण दिमाग को होने वाले गंभीर, प्रोग्रेसिव डैमेज के कारण होते हैं.

क्या कोई इलाज उपलब्ध है?
बचपन के डिमेंशिया के उपचार वर्तमान में मूल्यांकन के अधीन हैं या बहुत सीमित संख्या में विकारों के लिए स्वीकृत हैं और ये दुनिया के कुछ हिस्सों में ही उपलब्ध हैं. इनमें जीन रिप्लेसमेंट, जीन-संशोधित सेल थेरेपी और प्रोटीन या एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी शामिल हैं. ऑस्ट्रेलिया में बचपन के डिमेंशिया के एक रूप के लिए एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी उपलब्ध है. ये उपचार बीमारी पैदा करने वाली समस्याओं को ठीक करने का प्रयास करते हैं, और इसके आशाजनक परिणाम सामने आए हैं.

शोध पर ध्यान की कमी
ऑस्ट्रेलिया में कैंसर से पीड़ित बच्चों की मृत्यु दर 1997 से 2017 के बीच लगभग आधी हो गई है. इसकी मुख्य वजह शोध में हुई प्रगति है जिसने कई तरह के इलाजों को विकसित करने में मदद की है. लेकिन पिछले कुछ दशकों में, बचपन के डिमेंशिया से जूझ रहे बच्चों के लिए कुछ नहीं बदला है. 2017 और 2023 के बीच, बचपन के कैंसर के शोध को बचपन के डिमेंशिया के शोध से प्रति रोगी चार गुना अधिक धन मिला. ये तब है जब हर साल बचपन के डिमेंशिया से होने वाली मौतें बचपन के कैंसर से होने वाली मौतों के बराबर ही होती हैं.

बचपन के कैंसर पीड़ितों के लिए मिली सफलता यह दर्शाती है कि मेडिकल रिसर्च को पर्याप्त धन मुहैया कराने से मरीजों की सेहत में सुधार हो सकता है. ऑस्ट्रेलिया में बचपन के डिमेंशिया से पीड़ित बच्चों के लिए एक और बड़ी समस्या है- क्लिनिकल ट्रायल तक पहुंच का अभाव. इसी साल मार्च में प्रकाशित एक विश्लेषण से पता चला है कि दिसंबर 2023 तक, ऑस्ट्रेलिया में केवल दो ही क्लिनिकल ट्रायल बचपन के डिमेंशिया से पीड़ित मरीजों को भर्ती कर रहे थे.

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