Ravivar ke Upay: रविवार का ये उपाय दूर करेगा नौकरी-व्यापार में आ रही सभी बाधाएं, सूर्यदेव का मिलेगा आशीर्वाद
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Ravivar ke Upay: रविवार का ये उपाय दूर करेगा नौकरी-व्यापार में आ रही सभी बाधाएं, सूर्यदेव का मिलेगा आशीर्वाद

Sunday Remedies: रविवार का दिन सूर्यदेव को समरर्पित होता है. इस दिन सूर्यदेव की विधि-विधान से पूजा करना शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि जिस व्यक्ति से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं उसके जीवन की समस्याएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि का वास होता है.

Ravivar ke Upay: रविवार का ये उपाय दूर करेगा नौकरी-व्यापार में आ रही सभी बाधाएं, सूर्यदेव का मिलेगा आशीर्वाद

Suryashtakam Path: सनातन धर्म में सप्ताह के सात दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होते हैं. समर्पित देवी-देवताओं की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. इसी तरह रविवार का दिन सूर्यदेव को समरर्पित होता है. इस दिन सूर्यदेव की विधि-विधान से पूजा करना शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि जिस व्यक्ति से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं उसके जीवन की समस्याएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि का वास होता है.

रविवार के दिन करें ये उपाय
रविवार के दिन आप एक उपाय अपने नौकरी और व्यापार की कई समस्याओं से निजात पा सकते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रविवार को श्री सूर्योष्टकम् का पाठ करने से विशेष फल मिलता है. ज्योतिष शास्त्र की मानें तो जो कोई भी सूर्योष्टकम् का पाठ रविवार के दिन करता है उसकी करियर की समस्याएं दूर होती हैं और सूर्यदेव की कृपा से आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है. ये उपाय आपको 7 रविवार तक लगातार करना काफी शुभ माना जाता है. 

इस विधि से करें सूर्याष्टकम का पाठ
सूर्याष्टकम का पाठ करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े धारण कर लें. इसके बाद जल में अक्षत, लाल चंदन, फूल डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें. इसके बाद एक आसन पर बैठें और भक्तिभाव और सच्चे मन से सूर्याष्टकम का पाठ करें. 

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श्री सूर्याष्टकम् पाठ

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥1॥

सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥2॥

लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥3॥

त्रैगुण्यश्च महाशूरं ब्रह्माविष्णु महेश्वरम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥4॥

बृहितं तेजः पुञ्ज च वायु आकाशमेव च।
प्रभुत्वं सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥5॥

बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम्।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥6॥

तं सूर्यं लोककर्तारं महा तेजः प्रदीपनम् ।
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥7॥

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानप्रकाशमोक्षदम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥8॥

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम्।
अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत्॥9॥

अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने।
सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता॥10॥

स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने।
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति॥11॥

 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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