Holi 2024: मणिपुर में झोपड़ी जलाने का रीवाज! 5 दिनों तक चलने वाला Yaoshang फेस्टिवल क्यों है खास?
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Holi 2024: मणिपुर में झोपड़ी जलाने का रीवाज! 5 दिनों तक चलने वाला Yaoshang फेस्टिवल क्यों है खास?

होली रंगों और खुशियों का त्योहार है. देशभर में अलग-अलग तरीकों से होली मनाई जाती है. आइए जानते हैं कि मणिपुर की होली कैसे मनाई जाती है.

Holi 2024: मणिपुर में झोपड़ी जलाने का रीवाज! 5 दिनों तक चलने वाला Yaoshang फेस्टिवल क्यों है खास?

Manipur ki Holi: होली रंगों और खुशियों का त्योहार है. देशभर में अलग-अलग तरीकों से होली मनाई जाती है. चाहें मथुरा की लठ्ठमार होली हो या बनारस की चीता के भस्म से खेली जाने वाली मसान होली हो. मणिपुर भी इस उदाहरण से अछुता नहीं है. मणिपुर में होली को याओसांग कहा जाता है और यह 5 दिनों तक मनाया जाता है. याओसांग के दौरान मणिपुर में कई अनोखे रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं, जिनमें झोपड़ी जलाने का रिवाज भी शामिल है. मणिपुर के मैतेई जनजाती के लोग याओसांग त्योहार मनाते हैं. 

याओसांग का इतिहास
याओसांग का इतिहास कई सदियों पुराना है. मणिपुर का 5 दिवसीय होली त्योहार, रंगों, संगीत और नृत्य का उत्सव है. यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और मणिपुरी संस्कृति और परंपराओं का जश्न मनाता है.

याओसांग कैसे मनाया जाता है--

याओसांग का पहला दिन
हर गांव में सूर्यास्त के बाद याओसांग मेई थाबा (झोपड़ी का जलने) के साथ याओसांग की शुरुआत होती है. बच्चे नकातेंग (धन दान) के लिए हर घर में जाते हैं.

दूसरा और तीसरा दिन
दूसरे दिन, स्थानीय बैंड मणिपुर के इंफाल-पूर्वी जिले में गोविंदगी मंदिर में संकीर्तन करते हैं. लड़कियां अपने रिश्तेदारों के पास नकतेंग के लिए जाती हैं और रस्सियों से सड़कें जाम करके पैसे इकट्ठा करती हैं.

चौथा और पांचवां दिन
लोग एक-दूसरे पर पानी डालते हैं या छिड़कते हैं. रस्साकशी और सॉकर जैसे खेल आयोजित किए जाते हैं. स्थानीय व्यंजनों को पड़ोसियों के साथ साझा किया जाता है.

मणिपुर का डांस
याओसांग की एक विशेषता थबल चोंगबा (चांदनी में नृत्य) है. पुरुष महिलाओं का हाथ पकड़कर मंडलियों में नृत्य करते हैं.

याओसांग का महत्व
याओसांग शब्द का मतलब छोटी सी झोपड़ी होता है. याओसांग का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इस त्योहार के दौरान लोग रंगों से खेलते हैं, एक-दूसरे को गले लगाते हैं और मिठाईयां बांटते हैं.

झोपड़ी जलाने का रिवाज
याओसांग के दौरान झोपड़ी जलाने का रिवाज बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. ये रिवाज बिल्कुल उत्तर भारत के होलिका दहन से मिलता जुलता है. खास बात ये है कि इस झोपड़ी को बनाने कि लिए जिन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है वो लगभग 14 वर्ष के बच्चे लोगों के घरों से चुरा के लाते हैं. जलाने के लिए झोपड़ी को बुराई का प्रतीक माना जाता है और इसे जलाकर लोग बुराई को दूर करते हैं.

(Disclaimer. यहां दी गई जानकारी सामान्य जानकारियों पर आधारित है. Zee news इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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