प्रैक्टिकल, अफॉर्डेबल, क्यूटी पाई... इस कार को 3 महीने इस्तेमाल करने के 3 एक्सपीरियंस
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प्रैक्टिकल, अफॉर्डेबल, क्यूटी पाई... इस कार को 3 महीने इस्तेमाल करने के 3 एक्सपीरियंस

MG Comet: मैंने (लक्ष्य राणा) कॉमेट को लगभग तीन महीने तक इस्तेमाल किया और इन तीन महीनों के दौरान इसके बारे में बहुत सी चीजें एक्सपीरियंस कीं.

प्रैक्टिकल, अफॉर्डेबल, क्यूटी पाई... इस कार को 3 महीने इस्तेमाल करने के 3 एक्सपीरियंस

MG comet Review: अमेरिका और जापान, कारों के मामले में दो बहुत ही अलग तरह के देश हैं. अमेरिका में बड़े साइज की कारें ज़्यादा देखने को मिलती हैं जबकि जापान में छोटी कारों का कल्चर ज्यादा है. अब ऐसा है क्यों? मोटे तौर पर ये पूरा मामला स्पेस यानी जगह का है.  अमेरिका में आबादी कम और जगह ज़्यादा है, ट्रैफ़िक कम है और चौड़ी सड़कें हैं. वहां बड़ी गाड़ी को रखना और चलाना, दोनों ही आसान हैं. वहीं, जापान में भीड़ ज्यादा है, ट्रैफिक ज़्यादा है और जगह कम है तो छोटी कारों का चलन ज्यादा है क्योंकि इन्हें कम स्पेस में भी रखना और चलाना आसान होता है.

इधर भारत में कार के साइज को रुतबे से जोड़ा जाने लगा है, जो पता नहीं कितना सही है या कितना गलत. लेकिन, ये बात बिलकुल सही है कि देश में ऐसे बहुत शहर हैं, जहां भीड़ और ट्रैफिक बेहिसाब है. दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु सहित ऐसे शहरों की लंबी लिस्ट है. अब अगर शहरों में भीड़, ट्रैफिक और स्पेस को देखते प्रैक्टिकल कार की बात की जाए तो वो ऐसी कार होगी, जो साइज में छोटी हो, रोड पर कम जगह लेती हो, जिसकी पार्किंग के लिए ज़्यादा चिंता न करनी पड़े और आसानी से ट्रैफिक के बीच से गुजर सके.

इसी को ध्यान में रखते हुए कि एमजी मोटर्स ने बीते साल कॉमेट लॉन्च की. कॉमेट एक इलेक्ट्रिक कार है और मौजूदा समय में देश की सबसे कॉम्पेक्ट इलेक्ट्रिक कार है. मैं लक्ष्य राणा, नोएडा रहता हूं. यहां मैंने कॉमेट को लगभग तीन महीने तक इस्तेमाल किया और इन तीन महीनों के दौरान मैंने इसके बारे में बहुत सी चीजें एक्सपीरियंस की, जिनमें से तीन मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं.

शहरों के लिए प्रैक्टिकल

जिन शहरों में भीड़ ज़्यादा है, ज़्यादा ट्रैफिक है और साथ ही पार्किंग की भी समस्या ज़्यादा रहती है, वहां छोटी कारें ऑटोमैटिकली प्रैक्टिकल बन जाती हैं. दिल्ली-नोएडा ऐसी ही जगह है. काफी भीड़ है, ट्रैफिक है, रोड पर जाम लगता रहता है, पार्किंग की भी समस्या है और कॉमेंट इन सभी परेशानियों को काफी हद तक कम करती नजर आती है. यह सिर्फ 2,974mm लंबी और इतने 1,505mm चौड़ी है. अब आप समझ सकते हैं कि इसे रोड पर चलने के लिए लगभग उतना ही स्पेस चाहिए, जितना किसी ऑटो को चाहिए होता है.

जैसे ऑटो वाले ट्रैफिक के बीच में भी तेजी से निकल जाते हैं, वैसे ही अपने कॉम्पैक्ट साइज़ की वजह से यह भी ट्रैफ़िक में आपका काफी समय बचाती है. मेरे घर से ऑफिस की दूरी लगभग 17 किलोमीटर है, जिससे पीक ट्रैफिक के दौरान तय करने में किसी नॉर्मल साइज कार से मुझे लगभग 40 मिनट लगते हैं. इसी दूरी को कॉमेट से मैं लगभग 30-35 मिनट में पूरा कर लेता हूं. यानी, लगभग 5-10 मिनट की बचत. 

इसे पार्किंग के लिए बहुत थोड़ी सी जगह चाहिए. ऐसा कई बार हुआ जब मैंने कॉमेट को उन जगहों पर पार्क किया, जहां किसी सामान्य या बड़े साइज की कार को पार्क नहीं किया जा सकता क्योंकि स्पेस कम था. इतना ही नहीं, सोसाइटी में जो एक नॉर्मल कार की पार्किंग होती है, अगर उसमें कोई छोटी कार पार्क है, तो थोड़े एडजस्टेमेंट से यह भी उसी पार्किंग में फिट हो जाती है.

अफॉर्डेबल

क्योंकि इलेक्ट्रिक है तो रनिंग कॉस्ट तो कम होगी ही. इसके साथ 3.3kW का होम चार्जर मिलता है, जिसे आप घर पर इंस्टॉल कर सकते हैं. मेरे यहां प्रति यूनिट बिजली की कॉस्ट 7 रुपये है तो इसे एक बार फुल चार्ज करने में लगभग 126 रुपये का खर्चा (कार में 17.3 kWh बैटरी पैक है) आया होगा. मैंने इसे कभी अलग से कैलकुलेट नहीं किया, इसे लिए बिजली घर के इलेक्ट्रिसिटी मीटर से ही जाती थी. 

सिंगल फुल चार्ज पर ये आराम से 160-170km तक की दूरी तय कर लेती है. इसके बाद कार में सेफ साइड के लिए 15-20 पर्सेंट बैटरी चार्ज बच बचती है. यानी, पूरी तरह से बैटरी खत्म होने तक यह करीब 190km चल सकती है. ऐसे में सीधे तौर पर इसकी रनिंग कॉस्ट लगभग 65-70 पैसा प्रति किलोमीटर हुई, जो CNG की लगभग 3 रुपये, डीजल की लगभग 4-6 रुपये और पेट्रोल की लगभग 7-9 रुपये प्रति किलोमीटर की रनिंग कॉस्ट से बहुत कम है.

तीन महीने में मैंने और टीम ने मिलाकर कॉमेट को लगभग 4 हजार किलोमीटर चलाया. मेरा अनुमान है कि इतनी रनिंग के लिए इसे घर पर चार्ज करने में लगभग 2650 रुपये की इलेक्ट्रिसिटी खर्च हुई होगी. हालांकि, इसे फुल चार्ज करने में करीब 6 घंटे का समय लगता था. इसके लिए इसे रात में चार्जिंग पर लगाकर छोड़ना पड़ता था और फिर सुबह हटाना होता था.

क्यूटी पाई

अब ये क्यूटी पाई क्यों है? तो देखिए जापान में Kei कारों का कल्चर काफ़ी पुराना है. लेकिन, इंडिया में फिलहाल कार का साइज तय करता है कि आप कितने भौकाली हैं. ऐसे में छोटी कारों या खासकर इतनी छोटी कारों का सड़क पर दिखना बहुत मुश्किल है. ये बड़ा रीजन है कि लोग इसे मुड़-मुड़कर देखते हैं और जब आप रुककर खड़े होते हैं तो काफी लोग इसके बारे में पूछने भी लगते हैं.

इसके साथ ही, कार के कॉम्पैक्ट डिजाइन को काफी हद तक लीनियर रखने की कोशिश की गई है, जो इसके फेवर में जाता है. कार छोटी है लेकिन देखने में अच्छी लगती है. फिर जैसे ही आप केबिन में आते हैं तो स्पेस को अच्छे से यूटिलाइज किया गया है. दो इंटीग्रेटेड स्क्रीन (इन्फोटेनमेंट और इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर) है, वॉकथ्रू केबिन है और चार लोगों के लिए सीटिंग है.

कमियां

हालांकि, इनके अलावा कमियों की बात करें तो वह भी कई हैं. राइड क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं है. गाड़ी की रफ्तार 40 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा होने पर बाउंसीनेस फील होती है. तेज रफ्तार के साथ कॉर्नर पर बॉडी रोल भी काफी है. सीटें भी बहुत आरामदायक नहीं हैं. थाई सपोर्ट ना के बराबर है. पैडल भी बहुत आगे निकले (ड्राइवर की ओर) हुए. यह थोड़े अंदर की ओर होते तो ज्यादा बेहतर रहता है.

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