Kartam Bhugtam Movie Review: 'कर्तम भुगतम' फिल्म का टाइटल ही बॉक्स ऑफिस पर उसका भविष्य बताता है
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Kartam Bhugtam Movie Review: 'कर्तम भुगतम' फिल्म का टाइटल ही बॉक्स ऑफिस पर उसका भविष्य बताता है

'कर्तम भुगतम' थियेटर में रिलीज हो गई है.श्रयेस तलपड़े और विजय राज की इस फिल्म की काफी चर्चा है. अगर आप इस फिल्म को देखने का प्लान बना रहे हैं तो उससे पहले रिव्यू जरूर पढ़ लें.

कर्तम भुगतम मूवी रिव्यू

निर्देशक: सोहम पी शाह
स्टार कास्ट: श्रेयस तलपड़े, विजय राज, मधु, अक्ष परदशानी, गौरव डागर आदि
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में
स्टार रेटिंग: 3

Kartam Bhugtam Moview Review: 'कर्तम भुगतम' को निर्देशित किया है और लिखा भी है सोहम पी शाह ने, जिनकी मूवी 'काल' को काफी पसंद किया गया था और ये मूवी उसी तरह से दूसरी दुनिया के बारे में है, और काल की तरह ही एक संदेश के साथ भी. अभी तक सोहम पी शाह ने कई नामी सितारों के साथ फिल्म बनाई हैं, काल में भी अजय देवगन और जॉन अब्राहम जैसे बड़े चेहरे थे, लेकिन इस मूवी में उनका सबसे बड़ा चेहरा कौआ बिरयानी वाले विजय राज का है. ऐसे में एक जबरदस्त ढंग से शुरुआत करने के बावजूद मूवी आखिर तक आते-आते एक सामान्य किस्म की कमजोर बदला मूवी बनकर रह जाती है, 'कर्तम भुगतम'.

ऑकलैंड से भोपाल  पहुंचे श्रेयस
मूवी पहले 5 मिनट से ही आपको बांधने लगती है, ऑकलैंड से भोपाल आए देव (श्रेयस तलपड़े) को अपने पिता की कोविड से मौत के बाद उनकी जायदाद, उधार पैसा, लॉकर, बैंक अकाउंट आदि से पैसा लेकर वापस ऑकलैंड में स्टार्टअप शुरू करना है. लेकिन यहां आकर पता चलता है कि भारत के सरकारी सिस्टम में ये 10 दिन का काम नहीं था, बल्कि महीनों लगने वाले थे. ऐसे में उसका दोस्त शेफ गौरव (गौरव डागर) उसे अन्ना (विजय राज) व उनकी पत्नी सीमा (मधु) से मिलाता है. 

यहां से दिलचस्प मोड़ लेती है कहानी
अन्ना को ज्योतिष, ग्रहों और न्यूमरोलॉजी का गहन ज्ञान है, देव उनके चमत्कारों से प्रभावित हो जाता है, गौरव अन्ना के बताए उपाय से दुबई में चीफ शेफ बन जाता है. इधर देव का हर काम अटकता जा रहा था हो तो वह भी अन्ना से मिलता है, उपाय मानते ही एक-एक करके उसके सारे काम पूरे होने लगते हैं. पापा के खाते से दो करोड़ आ जाता है, लॉकर की अनुमति भी मिल जाती है, उधार का 50 लाख भी मिल जाता है. अचानक से जब महीनों तक देव का फोन नहीं लगता तो उसकी तलाश में उसकी गर्लफ्रेंड जिया (अक्षा) भोपाल आती है और कहानी फिर एक दिलचस्प मोड़ लेती है.

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एक्टिंग के मामले में विजय राज एक मजबूत मुकाम पर हैं, मधु ने जरूर एक लालची महिला का रोल करके एक प्रयोग किया है, और वो उसमें खरी उतरी हैं. श्रेयस और अक्षा अपने अपने किरदार में फिट नजर आते हैं, गौरव भी, फिल्म में किरदार कम थे से बड़ा रोल डायरेक्टर ही निभाता है, एक-एक किरदार और सीन को रचने में.

बाद में पस्त पड़े विजय राज
ऐसे में पहले हाफ में कहानी काल और तुम्बाड की तरह पूरी तरह रहस्मयी लगती है, लेकिन दूसरे हाफ में जबरदस्त ट्विस्ट आता है, जो कई जगह अच्छा लगता है और कई जगह बहुत सामान्य भी. विजय राज का जो किरदार फर्स्ट हाफ में सबसे मजबूत नजर आ रहा था, वो सेकंड हाफ में एकदम से ढक्कन हो जाता है और यही फिल्म की कमजोरी भी है. 

फिल्म के एक खलनायक का हीरो के सामने इतनी आसानी से सरेंडर भी जमता नहीं है. फिल्म के कई सीन बेवजह लगते हैं, हालांकि फिल्म की लंबाई इतनी ज्यादा भी नहीं है. लेकिन जब आप फिल्म के साथ जुड़ जाते हैं, चाहते है कि फिल्म इसी स्पीड में चलती रहे तो ढीलापन अच्छा नहीं लगता.

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फिल्म का टाइटल सॉन्ग 'कर्तम भुगतम' मीका ने गाया है और कहानी के साथ जुड़ा लगता है, सो लोग गुनगुनाएंगे, काल रूपम भी थीम के साथ मैच करता है. लेकिन सोनू निगम का गया खुदा तेरा भी है .. कहीं से भी फिट नहीं होता, जब आप हिंदू किरदारों के साथ और वो भी धार्मिक पहलू के साथ फिल्म बना रहे हैं, तो मस्जिद के बाहर खुदा का गीत डालने की जरूरत बस मुस्लिम दर्शकों को थिएटर तक बुलाने की हो सकती है.

लेकिन इतने बड़े स्टार्स के साथ काम करने के बाद विजय राज और श्रेयस के साथ कितनी भी अच्छी मूवी बनायेंगे, दर्शक थिएटर तक बहुत कम आएगा, उस पर नई हीरोइन अक्षा है. ऐसे में ये माना जा सकता है कि ये मूवी थिएटर से ज्यादा OTT के लिए बनी है और परिवार के साथ देखने भी लायक है, परिवारों को मनोरंजन के साथ-साथ संदेश भी मिलेगा सो अलग. 
 

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