Electricity Bill: इस देश में 64 रुपये पहुंचा बिजली की एक यूनिट का दाम, लोगों में मचा हाहाकार
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Electricity Bill: इस देश में 64 रुपये पहुंचा बिजली की एक यूनिट का दाम, लोगों में मचा हाहाकार

Electricity Bills in Pakistan: बिजली की दरकार आज हर घर में है. ऐसे में लोगों के जरिए इस्तेमाल की गई बिजली का बिल का भुगतान भी लोगों को करना पड़ता है. वहीं अब एक देश में बिजली के दाम में इजाफा देखने को मिल रहा है, जिसके कारण लोगों को होश उड़ गए हैं.

Electricity Bill: इस देश में 64 रुपये पहुंचा बिजली की एक यूनिट का दाम, लोगों में मचा हाहाकार

Electricity Bills: पाकिस्तान में बढ़ती महंगाई और बढ़े हुए बिजली बिलों के विरोध में देशभर में विभिन्न कारोबारी संगठनों ने हड़ताल की. दक्षिणपंथी जमात-ए-इस्लामी (जेआई) और व्यापारिक संगठनों ने विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया और उन्हें वकीलों से भी समर्थन मिला. कराची, लाहौर और पेशावर के साथ-साथ अन्य शहरों में वाणिज्यिक गतिविधियां बंद रहीं. वहीं मुख्य सड़कों पर सार्वजनिक परिवहन अधिकतर बंद रहा.

बिजली बिल
कराची में ताजिर एक्शन कमेटी (टीएसी) ने सरकार को शुक्रवार को बिजली बिल घटाने और हाल ही में बढ़ाई गईं पेट्रोल की कीमतों को कम करने के लिए 72 घंटे का समय दिया था. संस्था ने चेतावनी दी थी कि अगर सरकार ने उसकी मांगें पूरी नहीं कीं तो 10 दिन लंबी हड़ताल की जाएगी. टीएसी के संयोजक मुहम्मद रिजवान ने कहा कि हड़ताल में शामिल होने के लिए किसी पर कोई जबरदस्ती नहीं है. यह स्वैच्छिक है.

पाकिस्तान
रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान में 1 यूनिट बिजली की कीमत 64 रुपये पर पहुंच गई है. जिसके कारण विरोध प्रदर्शन हो रहा है. कराची चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (केसीसीआई) ने हड़ताल के आह्वान का समर्थन किया. हालांकि, उसके अध्यक्ष मोहम्मद तारिक यूसुफ ने कहा कि बड़े उद्योग हड़ताल का हिस्सा नहीं हैं. फेडरेशन ऑफ पाकिस्तान चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एफपीसीसीआई) के अध्यक्ष इरफान इकबाल शेख ने कहा कि सरकार हालात को समझने में नाकाम रही. उन्होंने कहा, “आर्थिक संकट से उबरने के लिए हटकर सोचना होगा.”

हड़ताल
हड़ताल ऐसे समय में हुई है जब एक दिन पहले प्रधानमंत्री अनवारुल हक काकर ने कहा है कि बढ़े हुए बिल बड़ी समस्या नहीं हैं और सरकार इसका समाधान निकालेगी. उन्होंने शुक्रवार को कहा था, “यह (बढ़े हुए बिजली बिल) बड़ा मुद्दा नहीं हैं, लेकिन राजनीतिक दल चुनावी बातें कर रहे हैं और इसे एक सामाजिक मुद्दे के तौर पर पेश कर रहे हैं.” (इनपुट: भाषा)

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