"चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो, आइना झूट बोलता ही नहीं"
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"चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो, आइना झूट बोलता ही नहीं"

Krishn Bihari 'Noor' Shayari: कृष्ण बिहारी ने लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया. RLO विभाग में नौकरी की. जहां उन्होंने लंबे समय तक काम किया. पेश हैं कृष्ण बिहारी के चुनिंदा शेर.

"चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो, आइना झूट बोलता ही नहीं"

Krishn Bihari 'Noor' Shayari: कृष्ण बिहारी 'नूर' बेहतरीन शायर हैं. उनकी पैदाइश 8 नवंबर 1926 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुई. उन्होंने अपनी बुनियादी तालीम घर पर ही हासिल की. इसके बाद लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया. उनकी सबसे मशहूर किताबों में 'दुख-सुख' (उर्दू), 'तपस्या' (उर्दू), 'समंदर मेरी तलाश में' (हिंदी), 'हुसैनियत की छाँव में' और 'ताजजल्ली-ए-नूर' शामिल हैं. 30 मई 2003 को गाजियाबाद के एक अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान उनकी मौत हो गई.

चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो 
आइना झूट बोलता ही नहीं 

ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं 
और क्या जुर्म है पता ही नहीं 

इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं 
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं 

कैसी अजीब शर्त है दीदार के लिए 
आँखें जो बंद हों तो वो जल्वा दिखाई दे 

मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा 
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए

ऐसा न हो गुनाह की दलदल में जा फँसूँ 
ऐ मेरी आरज़ू मुझे ले चल सँभाल के 

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आइना ये तो बताता है कि मैं क्या हूँ मगर 
आइना इस पे है ख़ामोश कि क्या है मुझ में 

मैं जिस के हाथ में इक फूल दे के आया था 
उसी के हाथ का पत्थर मिरी तलाश में है 

हवस ने तोड़ दी बरसों की साधना मेरी 
गुनाह क्या है ये जाना मगर गुनाह के बअ'द 

तिश्नगी के भी मक़ामात हैं क्या क्या यानी 
कभी दरिया नहीं काफ़ी कभी क़तरा है बहुत 

आइना ये तो बताता है मैं क्या हूँ लेकिन 
आइना इस पे है ख़ामोश कि क्या है मुझ में 

यही मिलने का समय भी है बिछड़ने का भी 
मुझ को लगता है बहुत अपने से डर शाम के बाद 

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