Solar Eclipse: सूर्य ग्रहण को लेकर क्या थी माया सभ्यता के लोगों की मान्यता, राजा क्यों अर्पित करता था अपना खून?
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Solar Eclipse: सूर्य ग्रहण को लेकर क्या थी माया सभ्यता के लोगों की मान्यता, राजा क्यों अर्पित करता था अपना खून?

Maya Civilization: माया लोग खगोलीय घटनाओं का लेखा-जोखा रखते थे.चे ऐसा इसलिए करते थे ताकि कुछ घटित होने पर वे पहले से सचेत रहें और उचित सावधानी बरतें.

Solar Eclipse: सूर्य ग्रहण को लेकर क्या थी माया सभ्यता के लोगों की मान्यता, राजा क्यों अर्पित करता था अपना खून?

Solar Eclipse 2024: सोमवार (8 अप्रैल) को 2024 पहला सूर्य ग्रहण लग रहा है. पृथ्वी के कई हिस्सों में कुछ समय के लिए दिन में ही पूरा अंधेरा छा जाएगा. हालांकि, यह सूर्यग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा. लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में इसे देखा जा सकेगा. आज सूर्य ग्रहण के बारे में सभी वैज्ञानिक जानकारियां उपलब्ध है लेकिन प्राचीन काल में ऐसा नहीं था. वैज्ञानिक जानकारी के आभाव में सूर्य ग्रहण को लेकर उस समय तरह-तरह के अंधविश्वास और डरावनी प्रथाओं का जिक्र कई सभ्यताओं में मिलता है. कुछ ऐसा ही माया सभ्यता के साथ भी है.

सूर्य ग्रहण की खगोलीय घटना माया सभ्यता के लिए बहुत महत्व रखती थी. मायावासी इसे एक बुरा शगुन मानते थे जो मृत्यु और नुकसान का प्रतिनिधित्व करता था. इसे बुराई से लड़ने के लिए, वे अपना रक्त चढ़ाते थे.

माया सभ्यता में विज्ञान
माया सभ्यता के लोग वैज्ञानिक या खगोलिए नजरिए से बिल्कुल पिछड़े हुए थे ऐसा नहीं कहा जा सकता है. माया सभ्यता में बेहतरीन आकाश निरीक्षक, महानत गणितज्ञ थे- जो सूर्य, सितारों और ग्रहों की गति पर अपने व्यवस्थित ऑब्जरवेशन का रिकॉर्ड रखते थे.

इस ऑब्जरवेशन का इस्तेमाल करते हुए, माया के गणितज्ञों ने दुनिया में उपयोग के लिए एक जटिल कैलेंडर प्रणाली बनाई. माया सभ्यता में विशाल पिरामिड के निर्माण किए गए जो अंतरिक्ष के रहस्यों को सामने लाने की एक कोशिश थी.

ड्रेसडेन कोडेक्स चार प्राचीन माया ग्रंथों में से एक है और 11वीं शताब्दी का है. यह खगोलीय ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक व्याख्याओं से भरा हुआ है और इसमें ऐसे सबूत हैं जो संकेत देते हैं कि मायावासी सूर्य ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकते थे.

हालांकि प्रकृति और अंतरिक्ष के हर रहस्य का जवाब उनके पास नहीं था शायद यही वजह थी वैज्ञानिक चेतना होने के बावजूद  माया सभ्यता में अंधविश्वास और अनोखी प्रथाएं प्रचलित थीं.

सूर्य ग्रहण को लेकर मायावासियों का विश्वास
माया लोग खगोलीय घटनाओं का लेखा-जोखा इसलिए रखते थे ताकि कुछ घटित होने पर वे पहले से सचेत रहें और उचित सावधानी बरतें

राजा और पुजारी तब अनुष्ठान करते थे और देवताओं को बलिदान देते थे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विनाश, पुनर्जन्म और नवीनीकरण का चक्र जारी रहे.

मायावासियों का मानना था कि सूर्यास्त का संबंध मृत्यु से है. उनकी विश्वास प्रणाली के अनुसार, सूर्य देवता 'किनिच अहाउ' ने सूर्यास्त के बाद माया अंडरवर्ल्ड 'ज़िबाल्बा' के माध्यम से खतरनाक यात्रा की और सूर्योदय के समय जन्म लिया.

राजा देता था अपने खून का बलिदान
हालांकि, उन्होंने सूर्य ग्रहण को 'टूटे हुए सूरज' के रूप में देखते थे और इस प्रलयकारी विनाश का संकेत माना जाता था. मायावासियों का मानना ​​था कि सूरज मर रहा है. उनका प्रकृति के संतुलन को बहाल करने और उसे अपने चक्र पर वापस लाने के लिए अनुष्ठान महत्वपूर्ण थे. इसलिए, सभ्यता के कुलीन और राजा अपने खून का बलिदान देते थे जिसमें वे अपने शरीर को छेदते थे और रक्त की बूंदें एकत्र करते थे जिन्हें बाद में सूर्य देव को प्रसाद के रूप में जला दिया जाता था.

'राजाओं के खून' की पेशकश को बलिदान का सर्वोच्च रूप कहा जाता था जिसका उद्देश्य किनिच अहाऊ को मजबूत करना था.

माया विश्वास प्रणाली के अनुसार,  देवताओं ने अपना खून बलिदान किया और इसे पहले इंसानों को बनाने के लिए मक्के के आटे में मिलाया. बदले में कुलीनों से अपेक्षा की गई कि वे उनका पोषण करने और उन्हें जीवन में वापस लाने के लिए भगवान को अपना खून दें.

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