याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा: रामधारी सिंह दिनकर की 5 कविताएं

कलम, आज उनकी जय बोल

जला अस्थियाँ बारी-बारी, चिटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल, कलम, आज उनकी जय बोल.

कृष्ण की चेतावनी

‘हित-वचन नहीं तूने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना, तो ले, मैं भी अब जाता हूँ, अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ। याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा।

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है! उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।

कलम या कि तलवार

दो में से क्या तुम्हे चाहिए कलम या कि तलवार मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति विजय अपार अंध कक्ष में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान

रश्मिरथी

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है।

समर शेष है

ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो, किसने कहा, युद्ध की बेला चली गयी, शांति से बोलो? किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से, भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?

परशुराम की प्रतीक्षा

हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ? हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ? यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ? दस-बीस अधिक हों तो हम नाम गिनायें। पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है, हर तरफ लगाये घात खड़ा घातक है।

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