Adoption Trend: बदल रहा है मेरा भारत, अब गोद लेने के लिए लड़के नहीं बेटियां बन रहीं पहली पसंद
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Adoption Trend: बदल रहा है मेरा भारत, अब गोद लेने के लिए लड़के नहीं बेटियां बन रहीं पहली पसंद

Adoption Trend in India: भारत अब बदल रहा है. जिन परिवारों में संतान नहीं होती, वे अब गोद लेने के लिए लड़के नहीं बल्कि बेटियों को पहली प्राथमिकता दे रहे हैं. इसे समाज में आए सकारात्मक बदलाव का प्रतीक माना जा सकता है.

 

Adoption Trend: बदल रहा है मेरा भारत, अब गोद लेने के लिए लड़के नहीं बेटियां बन रहीं पहली पसंद

Adoption of Daughters in India: भारतीय समाज में परिवार की एक आदर्श परिभाषा है. भरा-पूरा परिवार वही है जहां माता-पिता और बच्चे साथ हों. यही वजह है कि जो दंपति किसी कारणवश संतान को जन्म नहीं दे पाते वो अपने परिवार को पूरा बनाने के लिए बच्चों को गोद लेते हैं. केंद्र सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में बच्चों को गोद लेने वाले दंपतियों की संख्या बढ़ी है. खास बात ये है कि बीते कुछ वर्षों में लड़कियों को गोद लेने का ट्रेंड बढ़ा है. लड़कियों को गोद लेने के मामले में पंजाब जैसा राज्य पूरे देश में सबसे आगे है. ये ट्रेंड देश में बदलते सामाजिक ताने-बाने की नई तस्वीर दिखाता है. ये ट्रेंड बताता है कि लड़के और लड़कियों में भेद अब घट रहा है. 

भारत रहा है पितृसत्तात्मक समाज

भारत को पितृसत्तात्मक समाज कहा जाता है, यानी एक ऐसा समाज जहां पुरुष की सत्ता होती है, फिर चाहे वो पिता हो, पति हो या भाई हो. पुराने समय से ही भारतीय समाज में लड़कों को लेकर एक अलग तरह का माइंडसेट रहा है. इस माइंडसेट का ही असर है कि हर परिवार एक बेटा चाहता है जो आगे चलकर उनका वारिस कहलाए. वो वारिस जो उनके ना होने पर उनका खानदान, उनका कारोबार संभाल सके. इन सबसे बढ़कर मरने के बाद पूरे रीति रिवाज़ के साथ उनका अंतिम संस्कार करे. क्योंकि भारतीय समाज में माता-पिता के अंतिम संस्कार का अधिकार बेटों को ही है. कहा तो यहां तक जाता है कि अगर पुत्र माता-पिता की चिता को मुखाग्नि नहीं देगा तो उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होगी. 

वक्त के साथ बदल रही लोगों की सोच

लेकिन बदलते समय के साथ ये धारणा, ये माइंडसेट भी हाल के कुछ वर्षों में तेज़ी से बदला है. समाज में आ रहे बदलाव और कई नए क़ानूनों के बनने के बाद हमारे देश में महिला-पुरुष का फ़र्क कम होने लगा है. हालांकि अब भी ये पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है लेकिन एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत हो चुकी है और इसका असर भी दिखने लगा है. 

बच्चों को गोद लेने से जुड़े केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 2021 से 2023 के दौरान हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटेनेंस ऐक्ट के तहत बच्चों को गोद लेने वाले दंपतियों का तादाद बढ़ी है. आंकड़ों के मुताबिक बीते 2 सालों में 11 राज्यों में करीब 15 हज़ार 486 बच्चों को गोद लिया गया. इनमें 9 हज़ार 474 लड़कियां हैं और 6 हज़ार 12 लड़के शामिल हैं. पंजाब और चंडीगढ़ में सबसे ज़्यादा लड़कियों को गोद लिया गया.

पंजाब में लड़कियों को ज्यादा गोद लिया गया

पंजाब में बीते 2 साल में 7 हज़ार 496 बच्चों को गोद लिया गया, जिनमें 4 हज़ार 966 लड़कियां थी और 2 हज़ार 530 लड़के थे. वहीं चंडीगढ़ में 167 बच्चों को गोद लिया गया, जिनमें 114 लड़कियां और 53 लड़के शामिल हैं.

केंद्र सरकार के आंकड़ों पर नज़र डालें तो हम पाते हैं कि गोद लेने वाले दंपतियों ने छोटे बच्चों को ज़्यादा तरजीह दी. यही वजह है कि गोद लिए गए बच्चों में 6 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या ज़्यादा है. आंकड़े बताते हैं कि उनहत्तर प्रतिशत दंपति 2 साल से कम्र उम्र के बच्चों को गोद लेते हैं. 10 प्रतिशत दंपति 2 से 4 वर्ष तक बच्चों को चुनते हैं. जबकि 15 प्रतिशत दंपति 4 से 6 वर्ष तक के बच्चों को चुनते हैं. यानी बीते दो वर्षों में गोद लिए गए 94 प्रतिशत बच्चों की उम्र 6 साल से कम थी. 

हिमाचल, तमिलनाडु, दिल्ली भी नहीं रहे पीछे

गोद लिए जाने के बाद इन बच्च्चों को जीवन की तमाम खुशियां तो मिलती हैं, एक बेहतर भविष्य की उम्मीद भी जागती है. जब ये खिलखिलाते चेहरे किसी मकान में पहुंचते हैं तो अपनी चहक से उसे घर बना देते हैं. केंद्र सरकार की ओर से जो आंकड़े जारी किए गए हैं एक बेहतर भविष्य की झलक दिखाते हैं. लोगों की बदलती सोच का सच बताते हैं. और ये बदलती सोच बताती है कि लड़कियां किसी से कम नहीं है. हमने बताया कि पंजाब वो राज्य है जहां लड़कियों को सबसे ज़्यादा गोद लिया गया. 

हालांकि इस लिस्ट में पंजाब अकेला नहीं है. सिर्फ़ पंजाब और चंडीगढ़ ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में लड़कियों को गोद लेने वाले दंपतियों की संख्या ज़्यादा रही. हिमाचल में कुल 2107 बच्चों को गोद लिया गया, जिनमें  1278 लड़कियां शामिल हैं. तमिलनाडु में 1671 बच्चों को गोद लिया गया, जिनमें 985 लड़कियां शामिल हैं. दिल्ली में 1056 बच्चों को गोद लिया गया, जिनमें 558 लड़कियां शामिल हैं. उत्तराखंड में 685 बच्चों को गोद लिया गया , जिनमें 472 लड़कियां शामिल हैं. वहीं आंध्र प्रदेश में 1415 बच्चों को गोद लिया गया, जिनमें 835 लड़कियां शामिल हैं.

बदलाव तो आया लेकिन बेड़ियां टूटी नहीं

बदलाव की बयार तो बह चली है लेकिन पुराने बंधन अभी पूरी तरह से टूटे नहीं हैं. अभी भी कई जगहों पर बेटे... बेटियों पर भारी हैं. कई राज्य ऐसे भी है, जहां लोगों ने गोद लेने के मामले में लड़कों को तरजीह दी. जैसे तेलंगाना में 242 बच्चों को गोद लिया गया, जिनमें लड़कियों की संख्या सिर्फ़ 48 थी. ओडिशा में 291 बच्चों को गोद लिया गया, जिनमें 165 लड़कियां रहीं. जबकि पश्चिम बंगाल में गोद लिए गए 228 बच्चों में 112 लड़कियां थी. 

बात चली है बच्चियों को गोद लेने की तो आपको बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और उनकी पत्नी ने भी दो बच्चियों को गोद लिया है. ये दोनों बच्चियां स्पेशल चाइल्ड हैं और इनके नाम प्रियंका और माही हैं. दोनों बच्चियों को डी. वाई. चंद्रडूड़ ने 2015 में गोद लिया था, उस वक़्त वो इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस हुआ करते थे. सुप्रीम कोर्ट में चीफ़ जस्टिस बनने के बाद डी. वाई. चंद्रचूड़ दोनों बेटियों को सुप्रीम कोर्ट घुमाने भी लाए थे. 

CJI चंद्रचूड ने भी 2 बेटियां ले रखी हैं गोद

वो कहते हैं कि इन दोनों बच्चियों के उनकी ज़िंदगी में आने के बाद उनका नजरिए बदल गया और दोनों ने उनके जीवन को एक नई सकारात्मकता से भर दिया. CJI के मुताबिक दोनों बेटियां उनके फोन में नए गाने डाउनलोड करती रहती हैं और कोर्ट के रास्ते में वो वही गाने सुनते हैं. आपको बता दें कि चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की पहली पत्नी का साल 2007 में कैंसर की वजह से निधन हो गया था. पहली पत्नी से उनके दो बेटे हैं, जिनके नाम अभिनव और चिंतन हैं. दोनों ही पेशे से वकील हैं. पहली पत्नी के निधन के बाद 2008 में उन्होंने कल्पना दास से दूसरी शादी की थी.

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