मणिकर्णिका घाट

देवालय

घाटों के शहर काशी को दुनिया का देवालय भी कहते हैं. विश्व के प्राचीन शहरों में से एक काशी जिसे वाराणसी भी कहते हैं यह अपने घाटों के लिए भी जाना जाता है.

पूर्वार्भिमुख

काशी में कुल 84 घाट हैं और सभी घाटों के पूर्वार्भिमुख होने से घाटों पर सूर्योदय के समय सूर्य की पहली किरण पड़ती है.

अंतिम संस्कार

यहां के मणिकर्णिका घाट पर शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है. काशी के पंचतीर्थो में इस घाट को गिना जाता है. जिसका सीधा संबंध शिव जी और माता पार्वती से भी है.

पवित्र स्थान

हिंदुओं के लिए अंतिम संस्कार के लिए यह सबसे पवित्र स्थान माना गया है. कहते हैं कि शिव जी ने मणिकर्णिका घाट को अनंत शांति का वरदान दिया था.

जीवन का सत्य

इस घाट पर पहुंचकर व्यक्ति जीवन के सत्य को जान पाता है. यह एक ऐसा घाट है जहां पर चिता की आग कभी शांत नहीं रहती क्योंकि यहां अंतिम संस्कार जारी ही रहता है.

शवदाह

किसी ना किसी का शवदाह चलता रहता है और इस तरह यहां हर दिन 200 से 300 शव को अग्नि दी जाती है.

भगवान विष्णु

माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु ने शिव जी और माता पार्वती के स्नान के लिए कुंड निर्मित किया था जिसे मणिकर्णिका कुंड के नाम से जाना जाता है.

कर्ण फूल

स्नान करते हुए माता पार्वती का कर्ण फूल कुंड में जा गिरा जिसे महादेव ने ढूंढा था. इस तरह माता पार्वती के कर्णफूल पर ही घाट का नाम मणिकर्णिका रख दिया गया.

माता सती

ऐसी मान्यता यह है कि शिव जी ने माता सती के पार्थिव शरीर का मणिकर्णिका घाट पर ही अग्नि संस्कार किया था इस तरह महाश्मशान भी कहा जाता है.

डिस्क्लेमर

यह जानकारी सिर्फ मान्यताओं, धार्मिक ग्रंथों और माध्यमों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को मानने से पहले अपने विशेषज्ञ की सलाह ले लें. ये सभी एआई से निकाले गए हैं, इन्हें वास्तिक चित्र न माना जाए. यह एक अनुमान है

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