Kanshi Ram Jayanti 2024: 'राष्ट्रपति नहीं मैं प्रधानमंत्री बनूंगा' जानें कांशीराम ने क्यों ठुकरा दिया था वाजपेयी का इतना बड़ा ऑफर
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Kanshi Ram Jayanti 2024: 'राष्ट्रपति नहीं मैं प्रधानमंत्री बनूंगा' जानें कांशीराम ने क्यों ठुकरा दिया था वाजपेयी का इतना बड़ा ऑफर

BSP Founder Kanshiram Birth Anniversary: देश में दलित नेताओं की बात होते ही दो बड़े नाम सामने आते हैं. पहला बाबू जगजीवन राम और दूसरा नाम आता है कांशी राम. उत्तर भारत में पहली बार दलितों को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने का श्रेय बसपा के संस्थापक कांशीराम को जाता है. आगे जानें उनके जीवन के अनसुने किस्से....

 

BSP founder Kanshiram birth anniversary

BSP Party Founder Kanshiram: उत्तर भारत में दबे- कुचले और दलितों को सत्ता में बराबर का भागीदार बनाने वाले बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की आज 15 मार्च शुक्रवार को जयंती है. भारतीय राजनीति में कांशीराम को कई नामों से जाना जाता है. उनको बहुजन नायक, मान्यवर और साहेब जैसे कई नामों से जाना जाता है. कांशीराम देश में वह नाम थे जिनके खुद ज्यादा किस्से मशहूर थे. दलित समाज के लोगों का कहना है कि उन्होंने हमारे लिए अपना पूरा जीवन सादगी से समर्पित कर दिया था. यहां आगे जानें उनके जीवन के ऐसे कुछ अनछुए पहलू जो आपने पहले शायद ही सुने होंगे.....

खबर विस्तार से- 
कांशीराम का जन्म पंजाब के रैदासी सिख परिवार में 15 मार्च 1934 को हुआ. कांशीराम को सत्ता में दलितों की आवाद उठाने के लिए जाना जाता है. कांशीराम का नाम तब पहली बार चर्चा में आया जब उन्होंने अपनी बड़ी सरकारी नौकरी छोड़ दलितों के लिए  आंदोलन शुरु किया. कांशीराम ने अपने घर वालों के नाम पत्र लिखा कि- जब तक बाबा साहब का सपना पूरा नहीं कर लूंगा  तब तक चैन से नहीं बैठूंगा. साल 1964 में उन्होंने रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया नामक पार्टी ज्वॉइन की लेकिन कुछ कारणों की वजह से उन्होंने उसे छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने दलित शोषित संघर्ष समिति अपना संगठन भी बनाया. फिर उन्होंने बामसेफ बनाया हालांकि बाद में साल 1984 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) की स्थापना की.

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किस्सा सिसायक
कांशीराम के जीवन पर किताब लिखने वाले प्रोफेसर बद्रीनारायण अपनी किताब में लिखते हैं कि साल 1958 में कांशीराम पुणे में डीआरडीओ में लैब असिस्टेंट के पद पर कार्यरत थे, लेकिन नौकरी के दौरान एक ऐसी घटना हुई कि वो दलित राजनीति की ओर मुड़ गए. ‘उनके ऑफिस में फुले के नाम पर कोई छुट्टी कैंसिल कर दी गई थी. इसका उन्होंने विरोध किया. तमाम कोशिशों के बावजूद दलित कर्मचारी एकजुट हुए तो वो छुट्टी कर दी गई. इस घटना के बाद उन्हें समझ आ गया, जब तक दलित कर्मचारी एकत्रित नहीं होंगे. तब तक हमारी बात नहीं सुनी जाएगी. 

ठुकराया वाजपेयी का ऑफर
प्रोफेसर बद्रीनारायण उनसे जुड़ा हुआ एक और किस्सा अपनी किताब में लिखते हैं कि एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने कांशीराम को राष्ट्रपति बनने का ऑफर दिया. कांशीराम ने कहा कि राष्ट्रपति क्या, मैं तो प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं. वहीं  कांशीराम पर दूसरी किताब लिखने वाले लेखक एसएस गौतम लिखते हैं कि एक बार कांशीराम किसी ढाबे पर बैठे थे. वहां कुछ ऊंची जाति के लोग आपस में बैठकर बात कर रहे थे. उनकी बात का मजमून ये था कि उन्होंने सबक सिखाने के लिए दलितों की जमकर पिटाई की. इसे सुनकर कांशीराम बिफर पड़े और बात मारपीट तक आ पहुंची. 

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