Pratah Smran mantra: रोज सुबह उठकर देखें अपने हाथ और बोलें ये मंत्र, देखिए कैसे होगा चमत्कार
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Pratah Smran mantra: रोज सुबह उठकर देखें अपने हाथ और बोलें ये मंत्र, देखिए कैसे होगा चमत्कार

pratah Samran Mantra: हर एक दिन जब हम सुबह सोकर उठते हैं तो यह हमारे जीवन में एक नई शुरुआत होती है. सुबह के समय वायु शीतल, आकाश स्वच्छ, सूर्य निर्मल और प्रकृति हरी भरी ओस युक्त होती है. 

Pratah Smran mantra: रोज सुबह उठकर देखें अपने हाथ और बोलें ये मंत्र, देखिए कैसे होगा चमत्कार

पटना : pratah Samran Mantra: हर एक दिन जब हम सुबह सोकर उठते हैं तो यह हमारे जीवन में एक नई शुरुआत होती है. सुबह के समय वायु शीतल, आकाश स्वच्छ, सूर्य निर्मल और प्रकृति हरी भरी ओस युक्त होती है. इस दौरान जब हम जागरण कर लेते हैं तब हमें तुरंत ही इस नए दिन के लिए ईश्वर को धन्यवाद करना चाहिए. 

प्राचीन ऋषियों मनीषियों ने मनुष्य और प्रकृति को ही सबसे उच्च माना है और कहा है कि ईश्वर का निवास हर कण और प्राण में हैं. यही वजह है कि उन्होंने हमें प्रातः स्मरण मंत्र दिया है जो हमारे भीतर बसे ईश्वर के दर्शन कराता है.

इन मंत्रों के पाठ से हमें आयु, यश, धन, वैभव, उन्नति और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. जानिए ये मंत्र. 

कराग्रे वसते लक्ष्मी:, करमध्ये सरस्वती ।
कर मूले तु गोविन्द:, प्रभाते करदर्शनम ॥१॥
अर्थ: प्रातः काल सबसे पहले अपने हाथों का दर्शन कीजिए. हाथों में रचित विधाता की लकीरों का दर्शन कीजिए.और इन मंत्रो का श्रवण या स्वयं इनका पाठ कीजिए.

हाथ के शीर्ष पर हथेली पर देवी लक्ष्मी का निवास है और हाथ के मध्य में सरस्वती का निवास है. हाथ के आधार पर श्री गोविन्द का निवास है. इसीलिए व्यक्ति को सुबह के समय अपने हाथों को देखना चाहिए. एवं उक्त सभी देवी देवताओं का ध्यान पूर्वक मनन करना चाहिए.

समुद्रवसने देवि ! पर्वतस्तनमंड्ले ।
विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं पाद्स्पर्श्म क्षमस्वे ॥२॥
अर्थ: भूमि पर यानि पृथ्वी पर चरण रखने के समय माँ पृथ्वी से एक क्षमा प्रार्थना करें. पृथ्वी माँ का स्पर्श करके अपने माथे पर लगाएं. और इन मंत्रो को ध्यानपूर्वक पढ़े या सुने.

समुद्र जिसमे वास करते है. जिसने पर्वतों को धारण किया हुआ है. जो संसार को पोषित करने वाली है. भगवान श्री विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी जी, आपको मेरे चरणों से स्पर्श करने जा रहा हूँ. मुझे क्षमा करिएगा.

ब्रह्मा मुरारीस्त्रिपुरांतकारी 
भानु: शाशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्र: शनि-राहु-केतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥३॥

अर्थ: हे ब्रह्मा, विष्णु (राक्षस मुरा के दुश्मन. श्रीकृष्ण या विष्णु जी), शिव (त्रिपुरासुर का अंत करने वाले श्री शिव), सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु ये सभी देवता मेरे प्रातःकाल को मंगलमय करें.

सनत्कुमार: सनक: सन्दन:
सनात्नोप्याsसुरिपिंलग्लौ च।
सप्त स्वरा: सप्त रसातलनि
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥४॥

(ब्रह्मा के मानसपुत्र बाल ऋषि) सनतकुमार, सनक, सनन्दन और सनातन तथा (सांख्य-दर्शन के प्रर्वतक कपिल मुनि के शिष्य) आसुरि एवं छन्दों का ज्ञान कराने वाले मुनि पिंगल मेरे इस प्रभात को मंगलमय करें। साथ ही (नाद-ब्रह्म के विवर्तरूप षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद) ये सातों स्वर और (हमारी पृथ्वी से नीचे स्थित) सातों रसातल (अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल, और पाताल) मेरे लिए सुप्रभात करें.

सप्त समुद्र (अर्थात भूमण्डल के लवणाब्धि, इक्षुसागर, सुरार्णव, आज्यसागर, दधिसमुद्र, क्षीरसागर और स्वादुजल रूपी सातों सलिल-तत्व) सप्त पर्वत (महेन्द्र, मलय, सह्याद्रि, शुक्तिमान्, ऋक्षवान, विन्ध्य और पारियात्र), सप्त ऋषि (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ, और विश्वामित्र), सातों द्वीप (जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौच, शाक, और पुष्कर), सातों वन (दण्डकारण्य, खण्डकारण्य, चम्पकारण्य, वेदारण्य, नैमिषारण्य, ब्रह्मारण्य और धर्मारण्य), भूलोक आदि सातों भूवन (भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, और सत्य) सभी मेरे प्रभात को मंगलमय करें.

पृथ्वीसगन्धासरसास्तथापः
स्पर्शीचवायुज्र्वलनंचतेजः।
नभःसशब्दंमहता_सहैव
कुर्वन्तुसर्वेमम_सुप्रभातम्।।6 ।।

अपने गुणरूपी गंध से युक्त पृथ्वी, रस से युक्त जल, स्पर्श से युक्त वायु, ज्वलनशील तेज, तथा शब्द रूपी गुण से युक्त आकाश महत् तत्व बुद्धि के साथ मेरे प्रभात को मंगलमय करें अर्थात पांचों बुद्धि-तत्व कल्याण हों.

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