BJP Foundation Day: 10 प्वाइंट में जानिए अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी की भाजपा में क्या है अंतर
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BJP Foundation Day: 10 प्वाइंट में जानिए अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी की भाजपा में क्या है अंतर

भाजपा के गठन के बाद से संसद में 2 सीटों के साथ पहली बार पहुंची पार्टी के आज 303 सांसद मौजूद हैं. 43 साल की होने जा रही इस पार्टी ने वह सारे उतार-चढ़ाव देखे जो राजनीति में पार्टियों को देखना पड़ता है.

(फाइल फोटो)

BJP Foundation Day: भाजपा के गठन के बाद से संसद में 2 सीटों के साथ पहली बार पहुंची पार्टी के आज 303 सांसद मौजूद हैं. 43 साल की होने जा रही इस पार्टी ने वह सारे उतार-चढ़ाव देखे जो राजनीति में पार्टियों को देखना पड़ता है. फिर भी भाजपा के पीछे संघ (RSS) जैसी एक मातृ संगठन की ऐसी मौजूदगी है जिसकी वजह से पार्टी भारतीय राजनीति में अपने पांव जमाती चली गई. बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बार भाजपा ने केंद्र में सरकार का गठन किया तो वह सरकार 13 दिन चल पाई, फिर गठबंधन के सहारे 13 महीने की सरकार अटल जी ने चलाई और उसके बाद सरकार गिरी और चुनाव हुआ तो NDA की सरकार आई और एक बार फिर तीसरी बार अटल बिहारी के नेतृत्व में हीं 5 साल तक सरकार चली, इसके बाद फिर 10 साल तक केंद्र की सत्ता से भाजपा को वनवास देखना पड़ा. 

इसके बाद भाजपा ने 2014 में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा और इसमें भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ. सरकार पांच साल तक चली और फिर 2019 के चुनाव में कभी 2 सीट से शुरू होनेवाली पार्टी 303 सीट अपने दम पर जीतकर संसद भवन में पहुंची. आज वही सरकार चल रही है और बता दें कि भाजपा अब 43 साल की पार्टी होनेवाली है. 6 अप्रैल को भाजपा का 43वां फाउंडेशन डे मनाया जाएगा. आज भाजपा दावा करती है कि वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है. उसके पास सदस्यता ग्रहण करनेवाले लोगों की संख्या चीन के कम्युनिस्ट पार्टी से भी ज्यादा है. 

ऐसे में इस समय आपको जानना चाहिए कि आखिर अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी की भाजपा में अंतर क्या है. 

अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे और तीनों ही बार वह गठबंधन के सहारे सरकार चलाते रहे. जिसकी वजह से पहली बार 13 दिन और दूसरी बार 13 महीने में उनकी सरकार गिरा दी गई. हालांकि नरेंद्र मोदी भी गठबंधन की ही सरकार चला रहे हैं लेकिन बता दें कि इसमें भाजपा इतनी मजबूत है कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ संसद में लाया गया अविश्वास प्रस्ताव पिछली नरेंद्र मोदी 1.0 में खारिज हो गया था. जबकि 2019 में भाजपा के पास इतना बड़ा बहुमत है कि वह बिना गठबंधन दलों को साथ लिए भी सरकार चला सकते हैं. 

अटल बिहारी वाजपेयी के समय भी हिंदुत्व का उबाल भाजपा के अंदर था लेकिन वाजपेयी जी के पीएम रहते इसे सॉफ्ट हिंदुत्व ही रखा गया, जबकि नरेंद्र मोदी के सरकार गठन के बाद सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के नारे के साथ हिंदुत्व की सॉफ्ट छवि से आगे बढ़कर पार्टी एक अलग दायरे में आ खड़ी हुई है. हालांकि इसमें किसी दूसरे धर्म, संप्रदाय या जाति के वैमनस्यता की हालत नहीं है लेकिन अभी हिंदुत्व को लेकर सरकार का भाव एकदम साफ है. 

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अटल बिहारी वाजपेयी तक भाजपा को  उच्च जाति के वर्चस्व वाली ब्राह्मण-बनिया पार्टी के तौर पर लोगों ने देखा तो वहीं दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी के लिए सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और मजहब के लोगों को पार्टी से जोड़ना लक्ष्य रहा और उसमें बहुत हद तक वह कामयाब भी रहे. 

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में जहां गठबंधन सहयोगियों को साथ लेकर चला जाता था वहीं नरेंद्र मोदी की सरकार में भी गठबंधन सहयोगियों को खूब सम्मान मिलता रहा है लेकिन  'बीजेपी-फर्स्ट' के नियम को वह संभाले बैठे हैं.

अटल बिहार वाजपेयी पार्टी के विस्तार पर ध्यान तो देते थे लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी कश्मीर से लेकर केरल तक भाजपा को पहुंचाने के लक्ष्य पर काम करती रही है. 
  
अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा कहते रहते थे कि बिना मजबूत विपक्ष के लोकतंत्र में मजबूती नहीं आएगी लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार के गठने के बाद कांग्रेस मुक्त भारत का नारा प्रशस्त होता दिखाई देने लगा. 

अटल जी वह कारनामा नहीं कर पाए जो मोदी ने किया वह देश के पहले गैर कांग्रेसी नेता बने जिन्होंने दो बार लगातार पीएम बनकर भाजपा को सत्ता में बनाए रखा.

अटल बिहारी वाजपेयी जहां अपनी सरकार के दौरान विपक्षी नेताओं के साथ बैठकर फैसले लेने के लिए विचार करते थे वहीं नरेंद्र मोदी चौंकाने वाले फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं.  
 
पाकिस्तान को लेकर अटल बिहारी वाजपेयी का रूख स्पष्ट था वह उसमें वार्ता की गुंजाइश भी देखते थे. हालांकि उन्होंने राष्ट्र प्रथम से समझौता नहीं किया और कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटा दी. नरेंद्र मोदी की सरकार पहले दिन से ही पाकिस्तान के खिलाफ अटेकिंग दिखी और दो ऐसे मौके भी आए जब पाकिस्तान को यह एहसास हो गया कि भारत घर में घुसकर मारता भी. इसके साथ ही इस सरकार की नीतियों की वजह से पाकिस्तान विश्व में अलग-थलग पड़ गया.

वैसे तो विदेश नीति के मामले में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का कोई सानी नहीं था. फिर भी विदेशी जमीन पर जिस तरह से भारतीयों को नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के साथ सम्मान मिलना शुरू हुआ वह दोनों को जरूर थोड़ा अलग करता है. 

 

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