Bhagapur Lok Sabha Seat: भागलपुर दंगों के बाद से नहीं हुई कांग्रेस की वापसी, क्या इस बार अजीत शर्मा करेंगे बदलाव?
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar2221918

Bhagapur Lok Sabha Seat: भागलपुर दंगों के बाद से नहीं हुई कांग्रेस की वापसी, क्या इस बार अजीत शर्मा करेंगे बदलाव?

Bhagapur Lok Sabha Seat: इस सीट पर कभी कांग्रेस का दबदबा होता था, लेकिन 1989 में हुए भागलपुर दंगे के बाद से कांग्रेस बैकफुट पर चली गई और इसके बाद एक भी चुनाव कांग्रेस नहीं जीत पाई.

भागलपुर सीट

Bhagapur Lok Sabha Seat: लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में आज (शुक्रवार, 26 अप्रैल) को 33 राज्यों की 88 सीटों पर वोटिंग शुरू हो चुकी है. इस चरण में बिहार की 5 सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं. इनमें भागलपुर, बांका, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया शामिल हैं. भागलपुर सीट पर महागठबंधन से कांग्रेस ने अजीत शर्मा को मैदान में उतारा है, तो वहीं एनडीए की ओर से जेडीयू के सिटिंग सांसद अजय कुमार मंडल पर एक बार फिर से भरोसा जताया गया है. पटना से करीब 250 किमी दूर बसे भागलपुर को बिहार की रेशम नगरी भी कहते हैं. गंगा किनारे बसा यह क्षेत्र हमेशा से अध्यात्म और शिक्षा का केंद्र रहा है. इस सीट पर कभी कांग्रेस का दबदबा होता था, लेकिन 1989 में हुए भागलपुर दंगे के बाद से कांग्रेस बैकफुट पर चली गई और इसके बाद एक भी चुनाव कांग्रेस नहीं जीत पाई.

अजय मंडल ने रिकॉर्ड जीत हासिल की

1989-1996 तक इस सीट पर जनता दल के चुनचुन प्रसाद यादव सांसद रहे. 1998 में बीजेपी के प्रभाष चंद्र तिवारी ने पहली बार कमल खिलाया. 1999 में कम्युनिस्ट नेता सुबोध राय ने कब्जा कर लिया. लेकिन 2004 में बीजेपी के सुशील कुमार मोदी ने वापस सीट छीन ली. लगातार दो बार बीजेपी के शहनवाज हुसैन भी दिल्ली पहुंच चुके हैं. 2014 में उन्हें आरजेडी के शैलेश कुमार मंडल ने हराया था. 2019 में बीजेपी गठबंधन में यह सीट जेडीयू के खाते में गई और जेडीयू के अजय मंडल ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की थी. 

ये भी पढ़ें- पूर्णिया में पप्पू यादव ने त्रिकोणीय बना दिया मुकाबला, इससे किसको होगा नुकसान?

इस सीट के सामाजिक समीकरण

इस सीट पर समाजिक समीकरण बड़ी भूमिका अदा करते हैं. राजनीतिक दलों से मिले आंकड़ों के अनुसार यहां मुस्लिम करीब साढ़े तीन लाख, यादव तीन लाख हैं. वहीं गंगौता दो लाख, वैश्य डेढ़ लाख, सवर्ण ढाई लाख, कुशवाहा और कुर्मी डेढ़ लाख के करीब हैं. अति पिछड़ा और महादलित मतदाताओं की संख्या भी करीब तीन लाख है. यादव-मुस्लिम गठजोड़ के बाद आरजेडी को सिर्फ एक बार ही जीत हासिल हुई है.

Trending news