Explainer: क्या सरकार आपकी प्रॉपर्टी छीनकर पब्लिक में बांट सकती है? जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
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Explainer: क्या सरकार आपकी प्रॉपर्टी छीनकर पब्लिक में बांट सकती है? जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

Supreme Court On Wealth Distribution: लोकसभा चुनाव के बीच, देश में 'संपत्ति के बंटवारे' को लेकर राजनीतिक घमासान मचा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजी और सामुदायिक संपत्ति के बीच का अंतर स्पष्ट होना चाहिए. 

Explainer: क्या सरकार आपकी प्रॉपर्टी छीनकर पब्लिक में बांट सकती है? जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

Supreme Court News: क्या सरकार निजी स्वामित्व वाली संपत्ति का पुनर्वितरण कर सकती है? सियासी बहस के बीच यह सवाल सुप्रीम कोर्ट के सामने भी उठा है. बुधवार से अदालत ने इससे जुड़े मामले पर सुनवाई शुरू की. अदालत को तय करना है कि अगर निजी संपत्तियों को 'समुदाय के भौतिक संसाधन' माना जाए तो क्या सरकार उनका अधिग्रहण और पुनर्वितरण कर सकती है? संविधान के अनुच्छेद 39(b) में ऐसी व्यवस्था है. फैसला सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बनी नौ जजों की संविधान पीठ को करना है. बुधवार को अदालत ने कहा कि 'वर्तमान पीढ़ी द्वारा भावी पीढ़ियों के लिए ट्रस्ट में रखे गए सामुदायिक संसाधनों और निजी स्वामित्व वाली संपत्ति के बीच अंतर होना चाहिए.' सीजेआई ने कहा कि सामुदायिक संपत्तियों में प्राकृतिक संसाधन शामिल होंगे. सीजेआई ने कहा, 'हम यह नहीं कह सकते कि अनुच्छेद 39(b) जल, जंगल और खदान जैसी प्राइवेट प्रॉपर्टीज पर लागू नहीं होता. लेकिन इसे किसी की प्राइवेट प्रॉपर्टी को बांटने के स्तर तक नहीं ले जाना चाहिए.'

सुप्रीम कोर्ट के सामने आया मामला क्या है?

SC के सामने अभी जो केस आया है, वह महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 (MHADA) में 1986 के संशोधन को मुंबई में 'अधिग्रहित' संपत्तियों के मालिकों की चुनौती से उपजा है. 1976 में MHADA को इसलिए बनाया गया था क्योंकि मुंबई की कई पुरानी, जर्जर इमारतों में लोग रह रहे थे. MHADA के जरिए ऐसी इमारतों में रहने वालों से सेस वसूला जाने लगा. इस पैसे का इस्तेमाल मरम्मत और पुनर्निर्माण के लिए होना था.

1986 में MHADA में अनुच्छेद 39(b) का हवाला देकर धारा 1A जोड़ी गई. इस धारा के जरिए जमीनों और इमारतों का अधिग्रहण कर उन्हें 'जरूरतमंद लोगों' और 'ऐसी जमीनों और इमारतों के अधिभोगियों' को ट्रांसफर करने की व्यवस्था की गई. संशोधन के जरिए कानून में अध्याय VIII-A भी जोड़ा गया. इसमें प्रावधान है कि राज्य सरकार को सेस वाली इमारतों (और जिस भूमि पर वे बनी हैं) का अधिग्रहण करने की अनुमति होगी, यदि 70% निवासी ऐसा अनुरोध करें.

मुंबई में प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन ने MHADA के चैप्टर VIII-A को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. दलील दी कि इससे अनुच्छेद 14 के तहत मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है. HC से राहत न मिलने पर याचिकाकर्ता दिसंबर 1992 में सुप्रीम कोर्ट चले गए.

SC में मूल सवाल यह उठा कि क्या अनुच्छेद 39(b) में बताए गए 'समुदाय के भौतिक संसाधनों' में निजी संसाधन शामिल हैं या नहीं- जिनमें सेस वाली इमारतें भी शामिल होंगी. मार्च 2001 में पांच जजों की बेंच ने मामले को और बड़ी बेंच के पास भेज दिया. फरवरी 2002 में, सात जजों की बेंच ने जस्टिस अय्यर की व्याख्‍या का संज्ञान तो लिया मगर मामले को नौ जजों की बेंच के हवाले कर दिया. यही नौ जजों की बेंच अब सुनवाई कर रही है.

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संविधान के अनुच्छेद 39(b) में क्या लिखा है?

अनुच्छेद 39(b), संविधान के भाग IV में दिए गए 'राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों' के तहत आता है. इसके अनुसार, यह राज्य का दायित्व है कि वह ऐसी नीति बनाए जिससे 'समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस तरह वितरित हो कि आम लोगों की भलाई के लिए सर्वोत्तम हो.' नीति निर्देशक सिद्धांत केवल मार्गदर्शन के लिए हैं, इन्हें किसी भी अदालत में सीधे लागू नहीं किया जा सकता.

1977 से लेकर अब तक, सुप्रीम कोर्ट ने कई बार अनुच्छेद 39(b) की व्याख्या की है. 1977 में कर्नाटक बनाम श्री रंगनाथ रेड्डी मामले में SC के 7 जजों की बेंच ने 4:3 से फैसला दिया था कि निजी स्वामित्व वाले संसाधन 'समुदाय के भौतिक संसाधनों' के दायरे में नहीं आते. उस फैसले में जस्टिस कृष्‍ण अय्यर की अल्पमत वाली राय आगे चलकर बेहद अहम साबित हुई.

जस्टिस अय्यर ने कहा था कि निजी संपत्तियों को भी समुदाय के भौतिक संसाधनों में गिना जाना चाहिए. 1983 में संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल वाले मामले में पांच जजों की बेंच ने जस्टिस अय्यर वाली व्याख्या पर मुहर लगाई. 1996 के मफतलाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम भारत संघ मामले में भी जस्टिस अय्यर की व्याख्या का सहारा लिया गया.

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'संपत्ति के बंटवारे' पर मचा राजनीतिक घमासान

देश में इस समय लोकसभा चुनाव चल रहे हैं. वोटर्स को लुभाने के लिए मुख्य विपक्षी दल, कांग्रेस की ओर से 'विरासत टैक्स' का मुद्दा उठाया गया है. पहले राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस की सरकार बनने पर सबकी संपत्तियों की जांच होगी. यह पता लगाया जाएगा कि किसके पास कितनी संपत्ति है. रही-सही कसर कांग्रेस के सैम पित्रोदा ने बयान देकर पूरी कर दी. पित्रोदा ने 'विरासत टैक्स' के पक्ष में खुलकर बात की. राहुल ने पिछले साल 'जितनी आबादी, उतना हक' का नारा दिया था.

पीएम नरेंद्र मोदी और सत्ताधारी बीजेपी ने कांग्रेस नेताओं के इन बयानों को लपक लिया. मोदी ने कहा कि कांग्रेस लोगों की संपत्तियां और अधिकार छीनने की 'खतरनाक नीयत' रखती है. उन्होंने LIC की टैगलाइन के जरिए विपक्षी दल पर तंज कसते हुए कहा- 'कांग्रेस का मंत्र है कि लूट जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी.' कांग्रेस ने पित्रोदा के बयान से खुद को अलग कर लिया है. पित्रोदा ने कहा कि मीडिया ने उनके बयान को 'तोड़-मरोड़कर' पेश किया. 

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