EVM: बैलेट पेपर से चुनाव करवाने की तिकड़म.. क्या कांग्रेस ने निकाल लिया EVM का तोड़?
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EVM: बैलेट पेपर से चुनाव करवाने की तिकड़म.. क्या कांग्रेस ने निकाल लिया EVM का तोड़?

Lok Sabha Election 2024: दुनियाभर के नेता, चुनावों में जीत के लिए लोगों से लुभावने वादे करते हैं. चुनाव आते ही, वो लोगों को अपनी तरफ करने के तरीके इजाद करते हैं. वो मीठी मीठी बातें करते हैं. क्षेत्र के विकास कार्यों को गति देने के दावे करते हैं. यही नहीं, वो लोगों से उनके क्षेत्र को आदर्श बनाने के लिए बहुत कुछ करने का दावा करते हैं.

EVM: बैलेट पेपर से चुनाव करवाने की तिकड़म.. क्या कांग्रेस ने निकाल लिया EVM का तोड़?

Lok Sabha Election 2024: दुनियाभर के नेता, चुनावों में जीत के लिए लोगों से लुभावने वादे करते हैं. चुनाव आते ही, वो लोगों को अपनी तरफ करने के तरीके इजाद करते हैं. वो मीठी मीठी बातें करते हैं. क्षेत्र के विकास कार्यों को गति देने के दावे करते हैं. यही नहीं, वो लोगों से उनके क्षेत्र को आदर्श बनाने के लिए बहुत कुछ करने का दावा करते हैं. सिर्फ यही नहीं, पार्टी के स्तर पर तो जातीय गणित और धार्मिक तुष्टीकरण की भी योजनाएं तैयार होती है. लेकिन हमारे यहां स्थिति अलग है.

भारत में चुनाव आते हैं तो चर्चा विकास कार्यों के होने या ना होने की नहीं होती है. हमारे यहां विपक्षी नेता इस बात पर चर्चा करते हैं कि मतदान, वोटिंग मशीन से होना चाहिए या बैलेट पेपर के जरिए. मतलब जनता को क्या चाहिए और उन्हें क्या मिल रहा है, इसकी चिंता कोई नहीं करता है.

नेता जी को चिंता इस बात की होती है कि चुनाव मशीन से नहीं होने चाहिए बैलेट पेपर से होने चाहिए. हालांकि बैलेट पेपर से चुनाव होने पर जीत की गारंटी वो तब भी नहीं ले पाएंगे. लेकिन चुनावों में कई बार हारने के बाद अक्सर राजनेताओं को Political Insecurity हो जाती है. और इसी वजह से वो हारने की ऐसी वजह तलाशते हैं, जिसपर हार का ठीकरा फोड़ा जा सके और Political Career बचा रहे.

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेश बघेल ने अपनी पार्टी को जीत का नया Plan दिया है. उनको लगता है कि इस नए Plan से कांग्रेस पार्टी आने वाले चुनावों में बड़ी जीत दर्ज कर सकती है. हालांकि देखा जाए तो भूपेश बघेल का ये सवाल बहुत Interesting है. यकीनन आम जनता को इस बारे में कुछ खास जानकारी नहीं होगी. भूपेश बघेल का Grand चुनावी Plan ये है कि देश की 543 लोकसभा सीटों पर अगर 375 से ज्यादा उम्मीदवार खड़े हो जाएं तो चुनाव बैलेट पेपर से करवाने पड़ जाएंगे. और इनका मानना है कि इस तरीके से कांग्रेस की जीत की उम्मीद बढ़ जाएगी.

हमने EVM को लेकर कुछ खास जानकारियां जुटाई हैं, जो आपको जाननी चाहिए. जैसे जिस EVM की बात हो रही है वो है Electronic Voting Machine. EVM की मुख्य दो और कुछ जगह तीन यूनिट होती हैं. पहली है Ballot Unit- इसमें ही उम्मीदवारों के नाम, चुनाव चिन्ह और बटन होते हैं. दूसरी है Control Unit- जिस उम्मीदवार को वोट दिया जाता है,वो इस मशीन में दर्ज होता है. तीसरी है Verifiable Paper Audit Trail यानि V.V PAT, इस मशीन से वोट के बाद रसीद कटती है, जिस पर आपके वोट की जानकारी होती है. ये रसीद चुनाव आयोग वोट के मिलान के लिए इस्तेमाल करता है. ये मशीन अभी कम जगहों पर इस्तेमाल की जाती है.

भूपेश बघेल ने कहा है कि एक EVM में केवल 375 उम्मीदवारों का नाम आ सकता है. और अगर इससे ज्यादा हुए तो चुनाव आयोग, बैलेट पेपर से चुनाव करवाने को मजबूर हो जाएगा. तो इस Grand Plan में कितनी सच्चाई है ये अब हम आपको बताते हैं. 1 बैलेट यूनिट में एक बार में 16 उम्मीदवारों के नाम दिख सकते हैं, इसमें NOTA भी शामिल है. बैलेट यूनिट से जुड़ी हुई Control Unit में एक साथ 24 बैलेट यूनिट जोड़े जा सकते हैं. तो देखा जाए तो 24 गुणा 16 यानी NOTA समेत कुल 384 उम्मीदवारों के लिए एक बार में वोट किया जा सकता है.

मतलब ये है कि किसी लोकसभा क्षेत्र में अधिकतम 384 उम्मीदवारों को मिलने वाले वोट ही EVM मशीन दर्ज कर सकती है. तो भूपेश बघेल की गणित इस आंकड़े से थोड़ा ही पीछे थी . उन्होंने 375 उम्मीदवार बोले थे, लेकिन ये गिनती 384 है. देखा जाए तो इस मामले में वो सही थे.

लेकिन भूपेश बघेल ने कांग्रेस को जीत का जो Formula बताया है, उसने हमें भी सोचने को मजबूर कर दिया. सवाल ये है कि अगर किसी लोकसभा क्षेत्र में 384 से ज्यादा उम्मीदवार हों तो क्या चुनाव आयोग, सच में वहां बैलेट पेपर से चुनाव करवाएगा? मान लेते हैं कि अगर किसी क्षेत्र में 385 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतर गए, तो उस एक उम्मीदवार का क्या होगा? उसके लिए तो EVM में वोटिंग की जगह ही नहीं बन पाएगी.

तकनीकी रूप से देखा जाए तो भूपेश बघेल पूरी तरह से गलत नहीं हैं, लेकिन वो पूरी तरह से सही भी नहीं हैं. वजह ये है कि अधिकतम 384 उम्मीदवार को ही EVM के जरिए एक बार में वोट किया जा सकता है. लेकिन 384 से ज्यादा उम्मीदवार होने पर चुनाव बैलेट से होगा या नहीं, इसके बारे में भूपेश बघेल गलत हैं. दरअसल वो गलत इसलिए हैं क्योंकि चुनाव आयोग ने भी इस बारे में कभी नहीं सोचा. चुनाव आयोग ने इसकी योजना ही नहीं बनाई है कि अगर किसी लोकसभा क्षेत्र में 384 से ज्यादा उम्मीदवार खड़े हो जाएं तो क्या होगा. उन्होंने EVM की क्षमता को बढ़ाने पर विचार किया ही नहीं. इसीलिए इस सवाल का जवाब उनके पास है ही नहीं. हालांकि हम आपको इससे जुड़ी कुछ जानकारियां जरूर देना चाहते हैं.

देश में 543 लोकसभा क्षेत्र हैं. हर लोकसभा क्षेत्र में अगर अधिकतम 384 उम्मीदवार खड़े हो गए तो देश में कुल 2 लाख 8 हजार 512 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतर जाएंगे. चुनाव लड़ने के लिए 25 हजार रुपये ज़मानत के तौर पर जमा किए जाते हैं. यानी एक लोकसभा क्षेत्र से चुनाव आयोग के पास करीब 96 लाख रुपये जमानत के तौर पर जमा होंगे. अगर सभी लोकसभा क्षेत्र से अधिकतम 384 उम्मीदवार ही रहे, तो करीब 521 करोड़ रुपये जमानत के तौर पर चुनाव आयोग के पास जमा होंगे. जब किसी उम्मीदवार को चुनाव में डाले गए कुल वोट के 17 प्रतिशत से भी कम वोट मिलते हैं. तब उस स्थिति में जमानत जब्त हो जाती है.

अगर चुनावी पार्टियां विरोधी को हराने या बैलेट पेपेर से वोट कराने की उम्मीद में कैंडिडेट की संख्या 384 के पार ले जाएंगी, तो चुनाव आयोग के पास इस नई स्थिति से कमाई के अवसर भी बन सकते हैं. खैर ये तो आंकड़ेबाज़ी हुई. लेकिन सच्चाई ये है कि कांग्रेस पार्टी वर्ष 2014 में मिली हार के बाद से ही परेशान हैं. वो लगातार अपनी हार का ठीकरा EVM पर फोड़ती रही है. कांग्रेस पार्टी ने हार के बाद एक तरह से EVM के खिलाफ मोर्चा सा खोल दिया है.

EVM का विरोध वो हर तरह के चुनावों में करते आए हैं, चाहे वो चुनाव विधानसभा का हो या फिर लोकसभा का. हालांकि ये विरोध जीत के वक्त नहीं देखा गया है, ये विरोध हमेशा हार के बाद देखा गया है. अभी कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान मुंबई में EVM का सहारा लेकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा था. उन्होंने दावा किया था कि बीजेपी केवल EVM की वजह से जीत रही है.

कांग्रेस पार्टी ने कई बार EVM को बंद करके बैलेट पेपर से चुनाव करवाने की मांग की है और इसको लेकर कोर्ट का रुख भी किया है. लेकिन हर बार उनकी याचिकाएं खारिज हुई हैं. इसी महीने EVM को लेकर दो अलग-अलग याचिकाएं डाली गई थीं, जो खारिज हो चुकी हैं. सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं से पहले भी EVM को लेकर 10 से ज्यादा याचिकाएं खारिज कर चुका है. यही नहीं चुनाव आयोग ने जब लोकसभा चुनावों का ऐलान किया था. तब चुनाव आयुक्त ने EVM का विरोध करने वालों पर एक शेर के जरिए तंज कसा था.

वैसे देखा जाए तो EVM को लेकर भूपेश बघेल की बात में दम है. ऐसा नहीं है ये बयान अचानक से दिया हुआ कोई बयान है. ये एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है. वजह ये है कि चुनाव नजदीक आते ही EVM की एक ऐसी कमी के बारे में बताया गया है, जिसके बारे में चुनाव आयोग ने भी नहीं सोचा था. भूपेश बघेल की बातें काल्पनिक नहीं है, बल्कि ये व्यवहारिक लगती हैं. किसी भी लोकसभा क्षेत्र से 384 से ज्यादा उम्मीदवार खडे हो सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा? चुनाव आयोग अब इसी बात पर विचार कर रहा होगा.

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