ऐसा क्या खास है कि Gregorian Calendar को मानती है पूरी दुनिया, आखिर क्यों भारत ने इसे अपनाया?
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ऐसा क्या खास है कि Gregorian Calendar को मानती है पूरी दुनिया, आखिर क्यों भारत ने इसे अपनाया?

Gregorian Calendar: ग्रेगोरियन कैलेंडर को एकदम से ही पूरी दुनिया ने नहीं अपनाया, इसे अपनाने का अपना एक रहा इतिहास है. यहां हम जानेंगे कि आखिर क्यों और कैसे विश्व में यह कैलेंडर प्रचलन में आया.

ऐसा क्या खास है कि Gregorian Calendar को मानती है पूरी दुनिया, आखिर क्यों भारत ने इसे अपनाया?

Amazing Facts Of Gregorian Calendar: साल 2023 खत्म होने को है और 1 जनवरी को नए साल 2024 की शुरुआत होने जा रही है. इस दिन को लोग सेलिब्रेट करने की तैयारी में लगे हैं.  यह तो सभी को पता हैं कि हम हर 31 को पुराने साल को अलविदा करते हुए 1 जनवरी को न्यू ईयर का वेलकम करते हैं.

पूरी दुनिया ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह नए साल का यह जश्न मनाती हैं, लेकिन आपके मन में कभी यह सवाल आता है कि जिस कैलेंडर को हम मानते हैं आखिर वह कहां से आया है? आखिर भारत में इसे क्यों अपनाया जाता है और इसमें ऐसा क्या खास है कि जो इसे पूरी दुनिया मानती है? आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे ऐसे ही कुछ दिलचस्प सवालों के जवाब...

कई बार संशोधित हुआ यह कैलेंडर 
पूरी दुनिया में प्रचलित यह कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर कहलाता है. कहते हैं कि विश्व में कैलेंडर का इतिहास बहुत पुराना है. अपन-अपने शासनकाल के दौरान दुनिया के शक्तिशाली राजाओं ने अपने मुताबिक कैलेंडरों का चलन शुरू करवाया. इतना ही नहीं उन कैलेंडरों को कई देशों में फैलाने के लिए तमाम प्रयास भी किए. हालांकि, आपको एक बात जानकर बहुत हैरानी होगी की वर्तमान में इस्तेमाल होने वाला ग्रेगोरियन कैलेंडर हमेशा से ऐसा नहीं था, इसमें कई बार संशोधन  हुआ है. 

जूलियन कैलेंडर
कहा जाता है कि इससे संबंधित सबसे पहला कैलेंडर रोमन साम्राज्य में शुरू हुआ थी, तब रोमन कैलेंडर बहुत जटिल हुआ करता था. रोमन शासक जूलियस सीजर ने इसमें बदलाव करवाने के बाद जूलियन कैलेंडर चलावाया. यूरोप में कई सदियों तक जूलियन कैलेंडर का इस्तेमाल किया गया, जिसमें एक साल 365.25 दिन का था. दरअसल, एक साल 365.24219 दिन होने से इसमें हर 128 साल में एक दिन का फर्क होने लगा. यह अंतर 15 शताब्दियों के बाद 11 दिन का हो गया. इस बीच महीने भी बदलते रहे, लेकिन साल के दिन उतने ही रहे.

कैलेंडर को कैसे मिला ग्रैगोरियन नाम?
रोम के पोप ग्रेगोरी 13वें ने 1582 में इस कैलेंडर में संशोधन किया. उन्होंने जूलियन कैलेंडर की 4 अक्टूबर 1582 की तारीख 11 दिन बढ़ा कर 15 अक्टूबर 1582 कर दी, जिसके बाद इस कैलेंडर को ग्रैगोरियन नाम मिला. 16वीं सदी के बाद से यूरोपीयन पूरी दुनिया में जाकर वहां पर उपनिवेशन बनाने लगे. इस तरह उन्होंने अफ्रीका, एशिया, नॉर्थ और साउथ अमेरिका में ग्रेगोरियन कैलेंडर को चलाया.

इसे अपनाना था सुविधाजनक
वहीं, 19वीं सदी की शुरुआत तक तो यूरोपीय ताकत खासतौर से ईसाईयों ने विश्व पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया था, जिसके कारण ग्रेगोरियन कैलेंडर ज्यादातर देशों में धीरे-धीरे अपना लिया गया. 20वीं सदी में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बढ़ने के साथ ही ग्रेगोरियन कैलेंडर इस्तेमाल किया जाने लगा, क्योंकि इसे अपनाना लोगों को सुविधाजनकल लगने लगा.

सारे सरकारी कामकाज होते हैं इसी के मुताबिक  
भारत में ब्रिटेन ने यह कैलेंडर 1752 में  लागू किया था. हालांकि, आजादी के समय हिंदू कैलेंडर को अपनाए जाने पर विचार हुआ, लेकिन भारत सरकार ने सरकारी कामकाज ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार ही जारी रखे. इसके साथ ही सरकार ने हिंदू विक्रम संवत को भी अपनाया. 

ग्रेगोरियन कैलेंडर की अजीब बात
ग्रेगोरियन कैलेंडर में सभी महीने में दिन बराबर नहीं होते है. इसमें 30 दिन वाले 4 और 31 दिन वाले 4 महीने होते हैं. जबकि, फरवरी माह में 28 दिन होते हैं, जिसमें हर तीन साल एक पूरा दिन जोड़ा जाता है, जो लीप वर्ष कहलाता है. इस साल फरवरी माह में 29 दिन होते हैं.

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