मेरा बटर चिकन, मेरी दाल मखनी... मोती महल और दरियागंज रेस्टोरेंट में क्यों शुरू हुई स्वाद की जंग
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मेरा बटर चिकन, मेरी दाल मखनी... मोती महल और दरियागंज रेस्टोरेंट में क्यों शुरू हुई स्वाद की जंग

  अगर आप नॉनवेज खाने के शौकीन है तो एक ना एक बार बटर चिकन तो खाया ही होगा.

Butter Chicken and Dal makhani

Butter Chicken and Dal makhani:  अगर आप नॉनवेज खाने के शौकीन है तो एक ना एक बार बटर चिकन तो खाया ही होगा. अगर शाकाहारी हैं और दिल्ली में रहते हैं तो यहां की मशहूर दाल मखनी का स्वाद जरूर चखा होगा.  दिल्ली जिसे स्वाद का शहर कहा जाता है, इन दिनों दाल मखनी और बटर चिकन की जंग को लेकर चर्चा में हैं. दिल्ली के दो जाने-माने रेस्टोरेंट स्वाद की जंग को लेकर कोर्ट पहुंच गए हैं.  

क्या है दाल मखनी और बटर चिकन की जंग  

दिल्ली के फेसम रेस्टोरेंट मोती महल और दरियागंज रेस्टोरेंट के बीच इन दिनों स्वाद की जंग चल रही है. ये लड़ाई अब कोर्ट तक पहुंच गई है. बटर चिकन और दाल मखनी का ईजाद किसने किया, इसे लेकर दोनों के बीच कानूनी लड़ाई शुरू हो हई और मामला दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुंच गया.  

मोती महल VS दरियागंज रेस्टोरेंट  
 
दिल्ली के मोती महल रेस्टोरेंट (रूपा गुजराल) और दरियागंज रेस्टोरेंट (दरियागंज हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड) दोनों दाल मखनी और बटर चिकन पर अपनी दावेदारी कर रहे हैं. मोती महल रेस्टोरेंट ने दरियागंज रेस्टोरेंट पर बटर चिकन और दाल मखनी के निर्माता टैगलाइन को  लेकर केस दर्ज कर लिया है. मोती महल का दावा है कि उसके पूर्वजों ने सबसे पहले दाल मखनी और बटर चिकन तैयार किया.   वहीं दरियागंज रेस्टोरेंट के मालिकों का दावा है कि उनके पूर्वज स्वर्गीय कुंदन लाल जग्गी ने इसकी रेसिपी ईजाद की थी. वहीं मोती महल का भी कहना है कि उनके पूर्वज स्वर्गीय कुंदन लाल गुजराल ने इन दोनों डिशों को पहली बार बनाया था. कोर्ट के सामने मोती महल ने कहा कि उनके पूर्वक कुंदन लाल गुजराल ने ही पहली बार तंदूरी चिकिन और फिर बटर चिकन और दाल मखनी बनाई थी. उनके पूर्वज ही बंटवारे के बाद इस डिश को पाकिस्तान से भारत लेकर आए थे.  वहीं दरियागंज रेस्टोरेंट का दावा है कि पहला मोती महल रेस्टोरेंट पेशावर में दोनों रेस्टोरेंट्स के पुराने मालिकों यानी मोती महल के गुजराल और दरियागंज के जग्गी ने मिलकर खोला था. 

पाकिस्तान से भारत आया बटर चिकन 
कुंदन लाल गुजरात का जन्म साल 1902 में पाकिस्तान के पेशावर में हुआ. बड़े होकर उन्होंने 1920 में पेशावर में ही छोटे से भोजनालय में काम करना शुरू कर दिया, जहां उनकी मुलाकात कुंदर लाल जग्गी से हुआ, जो वहां रसोईया का काम करते थे.  गुजराल ने पेशावर के इसी रेस्टोरेंट में पहली बार तंदूरी चिकन की रेसिपी की. लोगों को ये डिश काफी पसंद आई. कुछ सालों में कंदन लाल गुजराल ने इस भोजनालय को खरीद लिया.  जग्गी भी उनके साथ ही काम करते थे. बंटवारे के बाद उन्हें सबकुछ छोड़कर भारत आना पड़ा. दिल्ली के दरियाजंग में दोनों ने अपनी पहली रसोई शुरू की और चिकन के डिश बनाकर बेचना शुरू किया. धीरे-धीरे वो फेमस हो गए और मोती महल की शुरुआत की. बाद में दोनों पार्टनर अलग हो गए और कुंदर लाल जग्गी ने अपना अलग रेस्टोरेंट दरियागंज रेस्टोरेंट शुरू किया. 

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