धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो... ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन... फिर इस के ब'अद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो... चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें... किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए
दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता... दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए
स को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था... सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें... इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा... वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती... ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती